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फास्ट बोलिंग में कैसे आया बदलाव, उमेश ने बताया

अरानी बसु, नई दिल्ली उमेश यादव अपने करियर के एक बड़े अर्से तक वह टीम से अंदर बाहर होते रहे। लेकिन अब वह भारतीय तेज गेंदबाजी आक्रमण का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। उन्हें जो भी मौका मिल रहा है वह उसे भुनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। हालिया घरेलू टेस्ट सीजन में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। विदर्भ के इस तेज गेंदबाज ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की। उन्होंने भारतीय पिचों में बदलाव, मौकों के लिए लंबा इतजार और एक गेंदबाज के रूप में अपनी यात्रा पर खुलकर बात की। क्या आप खुद को अब एक अलग गेंदबाज के रूप में देखते हैं? ऐसा कुछ नही है। लोगों को लगता है कि मेरी गेंदबाजी में काफी कुछ अलग हो रहा है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कितने मैच खेल रहा हूं। मुझे ज्यादा मैच नहीं मिलते। बीते दो साल में मैंने अपना ज्यादातर क्रिकेट घरेलू मैदान पर खेला है। जब आप मैच खेलते रहते हैं तो एक लय हासिल कर लेते हैं। 22 गज की उस पिच पर गेंदबाजी करने से आप ज्यादा सीखते हैं और बेहतर बनते हैं। यह आपको अपनी लय बरकरार रखने में मदद करता है। जब आप नियमित खेलते हैं तो खेल को बेहतर समझने लगते हैं। जब आपको कई बार बाहर बैठना पड़ता है तो खुद को मोटिवेटेड कैसे रखते हैं?जब आप विदेशी दौरों पर जाते हैं तो मुझे ज्यादा मैच नहीं मिलते। यह माइंडसेट की बात है। अगर मैं अपने विचारों को काबू नहीं रख पाऊंगा तो इसका असर मेरे खेल पर भी नजर आएगा। खेलने का मौका नहीं मिलने पर आप स्वाभाविक रूप से दुखी होते हैं। मैं जानता हूं कि जो गेंदबाज खेल रहे हैं वे भी 20 विकेट ले रहे हैं। तो, ऐसे में मुझे अपने मौके का इंतजार करना पड़ता है। मैं लगातार सोचता रहता हूं कि मौका मिलने पर मैं उसे कैसे भुनाऊंगा। मैं नकारात्मक नहीं सोच सकता। मैं बाहर बैठकर भी चीजें सीखता रहता हूं और फिर नेट्स में उन्हें आजमाता रहता हूं। इसे भी पढ़ें- करीब नौ साल से आप भारत के लिए खेल रहे हैं। क्रिकेट के इतर आपके जीवन पर क्या असर पड़ा है?मैं सकारात्मक लोगों के साथ ज्यादा वक्त बिताने की कोशिश करता हूं। इससे मुझे सही मानसिकता में रहने में मदद मिलती है। मेरा एक रूटीन है और मैं उसे फॉलो करता हूं। मेरा प्रयास होता है कि ज्यादा समय तक खाली न बैठा रहूं। चूंकि अगर आप अधिक समय तक खाली बैठे रहते हैं तो मन में कई नकारात्मक विचार आते हैं। दोस्तों से बात कर मैं खुद में सुधार करने की कोशिश करता हूं। मैं ऐसे सकारात्मक लोगों के साथ रहता हूं जो मुझे किसी भी स्तर पर क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित करते रहें फिर चाहे वह- घरेलू हो, भारत ए या फिर आईपीएल। मैं बस खेलना चाहता हूं। भारत में तेज गेंदबाजी के कल्चर में कितना बदलाव आया है? लोग जब तेज गेंदबाजों के बारे में बात करते हैं तो अच्छा लगता है। पहले जब हम घरेलू मैदानों पर खेलते थे तो सिर्प स्पिनर्स की बात करते थे। लोग यही अंदाजा लगाते थे कि पिच जल्द ही टर्न होने लग जाएगी। तेज गेंदबाज सिर्फ नई गेंद से बोलिंग करते थे और उन्हें दोबारा आक्रमण पर तभी लगाया जाता था जब गेंद रिवर्स स्विंग होने लगती थी। हमारा काम स्पिनर्स के लिए गेंद को पुराना करना होता था। कई बार स्पिनर्स नई गेंद से गेंदबाजी आक्रमण की शुरुआत भी करते थे। यह देखकर अच्छा लगता है कि अब हमें ऐसे गेंदबाजों के रूप में देखा जाता है जो सारा दिन बोलिंग कर सकते हैं। जब तेज गेंदबाजों की यह पीढ़ी एक साथ आई तो हम सभी पांच गेंदबाजों ने तय कि हम सिर्फ स्पिनर्स के लिए गेंद तैयार नहीं करेंगे। हम विकेटों के बारे में सोचने लगे। इससे हमें नई गेंद मिलना तय हुआ। इसे भी पढ़ें- क्या आपको लगता है कि इन तेज गेंदबाजों की कामयाबी के पीछे भारत में अब मिलने वाली पिचों की भी कोई भूमिका है?अच्छे मुकाबले के लिए अच्छी पिच होना जरूरी है। जिस भी विकेट पर गेंद और बल्ले के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा वहां क्रिकेट का स्तर सुधरेगा और लोग भी उसका आनंद उठाएंगे। आपको चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पिच में अच्छा उछाल होना जरूरी है। तेज गेंदबाज मुकाबले में अहम बने रहने चाहिए। लोगों की मानसिक स्थिति में सुधार आया है क्योंकि लोग अब तेज गेंदबाजों की अहमियत को समझने लगे हैं। इसे भी पढ़ें- आपको टेस्ट मैचों के विशेषज्ञ गेंदबाज के तौर पर ब्रांड किया गया है...सफेद गेंद का सेशन अभी शुरू हुआ है। आप देख सकते हैं कि भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी, कुलदीप यादव टीम में वापस आ रहे हैं। अगर मैं लगातार अच्छा करता रहा तो मैं भी सीमित ओवरों की टीम में वापस आ सकता हूं। सीमित ओवरों के क्रिकेट में वापसी करना कितना मुश्किल है? इसमें काफी अंतर है। टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाज अपना समय लेता है और फिर आपको उसे आउट करने का तरीका तलाशना पड़ता है। लेकिन लाल गेंद सारा दिन गेंदबाजों के लिए कुछ न कुछ करती रहती है। तो इस पर रन बनाना भी आसान नहीं होता। लेकिन सफेद गेंद तीन-चार ओवरों के बाद कुछ ज्यादा हरकत नहीं करती। ऐसे में आपको नई गेंद के साथ विकेट लेने का प्रयास करना पड़ता है। सफेद गेंद (सीमित ओवरों) में बल्लेबाज हमेशा रन बनाने का प्रयास करता रहता है। गेंदबाजों को इस मौके का फायदा उठाने का प्रयास करना चाहिए।


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