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हार, चोट और एनीमिया- हर मुश्किल को मात देकर 33 साल की फ्लोरा डफी ने रचा इतिहास, बनीं अपने देश की पहली गोल्ड मेडलिस्ट

ट्रायएथलीट फ्लोरा डफी ने मंगलवार को इतिहास रच दिया। उन्होंने अपने देश बरमूडा के लिए ओलिंपिक में पहला गोल्ड मेडल जीता। 33 वर्षीय इस ऐथलीट ने यह दौड़ 1 घंटा, 55 मिनट और 36 सेकंड में पूरी की। उन्होंने ब्रिटेन की जॉर्जिया टेलर-ब्राउन को एक मिनट के अंतर से हराया। वहीं अमेरिका की ऐथलीट कैटी जाफर्स ने ब्रॉन्ज मेडल जीता।

2008 में वह रेस खत्म नहीं कर पाईं थीं। उन्होने खेल छोड़ दिया था। उन्होंने डिग्री पूरी करने से पहले नौकरी की। लेकिन वह लौटीं। न सिर्फ लौटीं बल्कि उन्होंने इतिहास रच दिया। वह 70 हजार की आबादी वाले अपने देश के लिए समर ओलिंपिक में सोने का तमगा जीतने वालीं पहली ऐथलीट बनीं।


हार, चोट और एनीमिया- हर मुश्किल को मात देकर 33 साल की फ्लोरा डफी ने रचा इतिहास, बनीं अपने देश की पहली गोल्ड मेडलिस्ट

ट्रायएथलीट फ्लोरा डफी ने मंगलवार को इतिहास रच दिया। उन्होंने अपने देश बरमूडा के लिए ओलिंपिक में पहला गोल्ड मेडल जीता। 33 वर्षीय इस ऐथलीट ने यह दौड़ 1 घंटा, 55 मिनट और 36 सेकंड में पूरी की। उन्होंने ब्रिटेन की जॉर्जिया टेलर-ब्राउन को एक मिनट के अंतर से हराया। वहीं अमेरिका की ऐथलीट कैटी जाफर्स ने ब्रॉन्ज मेडल जीता।



देश की पहली गोल्ड मेडलिस्ट
देश की पहली गोल्ड मेडलिस्ट

डफी की कामयाबी ने बरमूडा को समर ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाला आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे छोटा देश नबा दिया। इस द्वीपीय देश की आबादी करीब 70 हजार है।



खुशी बेमिसाल
खुशी बेमिसाल

फ्लोरा जीत के बाद जाहिर रूप से काफी खुश और उत्साहित थीं। उन्होंने कहा, 'मैंने अपना गोल्ड मेडल जीतने बल्कि अपने देश के लिए पहला ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने का सपना पूरा कर लिया। यह मेरी निजी उपलब्धि से बड़ा है। और वाकई एक बड़ा लम्हा है। यह मेरे जीवन में दौड़ का सबसे लंबा किलोमीटर (दौड़ का आखिरी किलोमीटर) था।



सोने सी चमक
सोने सी चमक

उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि मैं अपने बाकी के जीवन में ओलिंपिक चैंपियन कहलाई जाऊंगी।' बरमूडा के लिए ओलिंपिक में आखिरी पदक बॉक्सर क्लारेंस हिल ने जीता था। उन्होंने 1976 के मोंट्रेयाल ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था।



रेस पूरी नहीं की तो नौकरी करने लगीं
रेस पूरी नहीं की तो नौकरी करने लगीं

डफी के लिए यह शानदार वापसी थी। चोटों और साल 2013 में एनीमिया से गुजरने के बाद उन्होंने वपासी की। साल 2008 में इवेंट खत्म नहीं करने के बाद उन्होंने खेल छोड़ दिया था और एक दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने अपनी डिग्री के लिए पढ़ाई भी की। पर खेल का प्यार उन्हें खींच लाया।



सड़क पर फिसलन थी, इरादों में नहीं
सड़क पर फिसलन थी, इरादों में नहीं

फिसलन भरी परिस्थितियों के चलते यह रेस 15 मिनट की देरी से शुरू हुई। पिछली रात को तोक्यो में काफी बारिश हुई थी। डफी ने आखिरी सेक्शन में बढ़त बनानी शुरू की। पहले चार चक्कर के बाद उन्होंने एक मिनट की बढ़त बना ली थी। उनकी बढ़त को पूरी दौड़ में कहीं कोई चुनौती नहीं मिली।



चेहरे पर आई खुशी
चेहरे पर आई खुशी

रेस खत्म होते ही उनकी आंखों में आंसू थे। वह जानती थी कि उन्होंने क्या हासिल किया है। उन्होंने कहा, 'मैंने सड़क किनारे अपने पति, अपने कोच को खड़े देखा। तब जाकर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आई।'



छोटे देश, बड़े कारनामे
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