केपटाउन 'हम पंत को स्ट्रोक प्ले रोकने के लिए मना नहीं कर रहे। हम बस यह चाहते हैं कि वह क्रीज पर थोड़ा वक्त बिताकर शॉट खेले।' वॉन्डर्स में ऋषभ पंत के आउट होने के बाद टीम इंडिया के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कही थी। पंत की आक्रामकता पर लगाम नहीं लगानी है बस उसे सही दिशा देनी है। आंख बंद करके नहीं, आंख जमने के बाद मारना है। और लगता है कि 24 साल के इस विकेटकीपर बल्लेबाज के जेहन में यह बात बैठ गई। गुरुवार को केप टाउन में पंत ने जिस अंदाज में बल्लेबाजी की उससे तो यही लगता है। साउथ अफ्रीकी गेंदबाजी आक्रमण को पता था कि पंत लालच में फंसते हैं। उन्होंने कोशिश भी की। लेकिन इस बार पंत के इरादे जरा अलग दिखे। इंग्लैंड में पंत बहुत खराब फॉर्म में दिखे। साउथ अफ्रीका में भी इस मैच से पहले उनके रवैये पर सवालिया निशान लगा। टीम में पंत की जगह पर सबकी निगाह लगने लगी। सवाल पंत की क्षमता पर नहीं रहे। सवाल उनके रवैये पर रहे। यही सवाल रहा कि उनका रवैया 'लापरवाही' भरा रहता है। वक्त की नजाकत को नहीं समझते। लेकिन न्यूलैंड्स में वह नए अवतार में नजर आए। पंत जब क्रीज पर उतरे तो स्कोर था 58 रन पर चार विकेट। अजिंक्य रहाणे एक बार फिर सस्ते में लौटे थे। सिर्फ एक रन बनाकर। इससे पहले दिन की दूसरी ही गेंद पर चेतेश्वर पुजारा मार्को यानसन का शिकार बने थे। टीम इंडिया संकट में थी। और कप्तान विराट कोहली की पूरी कोशिश थी नजरें जमाने पर। वह संयम से खेल रहे थे। विकेट बचाना जरूरी था लेकिन सिर्फ उससे बात नहीं बनती। रन बनाने पड़ते हैं। और रन बनाने की यह जिम्मेदारी पंत ने उठाई। पंत ने कोहली के साथ मिलकर 94 रन जोड़े। लेकिन इसमें कोहली का योगदान सिर्फ 15 रन का रहा। कोहली ने इसके लिए 103 गेंद खेलीं। वहीं दूसरी ओर पंत ने 76 गेंद पर 71 रन बना दिए। उन्होंने आक्रमकता और सूझबूझ का अनोखा परिचय दिया। निचले क्रम के बल्लेबाजों के साथ मिलकर अपना शतक पूरा किया। पंत ने जब सेंचुरी पूरी की तो टीम का स्कोर नौ विकेट पर 195 रन था। यानी आधे से ज्यादा रन उनके बल्ले से निकले। पंत की इस पारी को देखकर बीते साल जनवरी में गाबा में खेली गई पारी की याद सबसे पहले आई। भारत को मैच में जीत दिलाने में उन्होंने जान झोंक दी थी। नाबाद 89 रन बनाकर लौटे थे। जीत का सेहरा सिर पर बांधे। इतिहास के पन्नों पर अपने बल्ले से दस्तखत करते हुए। इससे पहले सिडनी में भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया। भारत पर हार का संकट था। लेकिन पंत आए और आकर बल्ला चलाया। और, क्या खूब चलाया। भारत, जिसकी हार तय लगने लगी थी, जीत के इरादे करने लगा। पंत 97 रन बनाकर आउट हुए। भारत को जीत तो नहीं दिला पाए लेकिन ऑस्ट्रेलिया के हौसले जरूर पस्त कर गए। इसके बाद अश्विन और हनुमा विहारी ने ऐतिहासिक ड्रॉ करवाया। तो, अपने बल्ले से करिश्मा करने की आदत रुड़की के इस खिलाड़ी की रही है। केपटाउन में हालात थोड़े अलग थे और पंत का अंदाज भी। ऐसा नहीं है कि उनका स्ट्राइक रेट कम था। उन्होंने 133 गेंद पर शतक पूरा किया। यानी वह उस नदी की तरह थे जिसके बहाव में रवानगी पूरी थी लेकिन उसने किनारे नहीं तोड़े थे। पंत के स्ट्रोकप्ले में एक ठहराव था। वह हर गेंद को मारने की कोशिश में नहीं दिखे। लालच में फंसने से आम तौर पर बचते ही नजर आए। लेकिन जरूरत पड़ने पर हाथ भी खोले। स्लॉग स्वीप लगाए, पुल शॉट खेले। पूरी ताकत के साथ ड्राइव लगाए और तो और रिवर्स स्कूप तक खेलने की कोशिश की। लेकिन ज्यादातर मौकों पर वक्त के तकाजे को देखते हुए। केशव महाराज की गेंदों पर लगातार दो छक्के लगाए। रनों का बहाव बना रहे इसकी पूरी कोशिश पंत ने की। भारत की बढ़त को 211 रन पंत अकेले अपने दम पर ले गए। निचले क्रम के बल्लेबाजों के साथ मिलकर स्कोर को आगे बढ़ाने में लगे रहे। हालांकि दूसरे छोर पर उन्हें साथ मिलना बंद हो गया। रविचंद्रन अश्विन, शार्दुल ठाकुर दोनों दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाए। दूसरी ओर पंत समझ गए कि हाथ खोलने पड़ेंगे। उन्होंने ऐसा किया भी। 94 के स्कोर पर उन्होंने रबाडा की गेंद पर लॉन्ग ऑफ पर बड़ा ड्राइव खेला। गेंद तेंबा बावुमा के हाथ से लगकर बाउंड्री के पार गई। 99 के स्कोर पर उन्होंने गेंद को ऑन साइड पर खेलकर अपना शतक पूरा किया। एक वक्त जब दूसरे छोर पर विकेट गिर रहे थे तो लगा कि शायद पंत सैकड़े से चूक जाएंगे। वह पहले ही 90s में आउट हो चुके हैं। लेकिन ज्यादातर मौकों पर उनके शॉट सिलेक्शन पर ही सवाल थे। यहां तस्वीर कुछ अलग थी। पंत विकेट फेंकना नहीं चाहते थे पर दूसरे छोर पर साथ तो मिले। निचले क्रम के बल्लेबाजों को बचाने के लिए उन्होंने सिंगल लेने से इनकार किया। वह खुद को तनाव मुक्त रखते दिखे। मजाक में क्रीज के समानंतर दौड़ना। किसी तरह अपनी ऊर्जा को सही जगह पर इस्तेमाल करना। पंत का अंदाज अलग हैं। दुनियाभर के दिग्गज उन्हें एक्स-फैक्टर कहते हैं। यानी जब वह चलेंगे तो सब अपने हिसाब से चलाएंगे। हां, वह गलती करेंगे। हर खिलाड़ी करता है। बस, पंत को इस बात का ध्यान रखना है कि 'एक गलती और दूसरी गलती में सात-आठ महीने का अंतर हो।' वही बात जो कोहली को महेंद्र सिंह धोनी ने समझाई। और उनकी आलोचना करने वालों को भी सोचना है कि यही पंत का अंदाज है। वह खुलकर खेलेंगे और जब उनका दिन होगा तो फिर ज्यादातर मौकों नतीजा वही होगा जो हर भारतीय फैन चाहता है। तो हम तो यही कहेंगे पंत का स्ट्रोकप्ले जारी रहे, लेकिन...
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