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खेल इंप्रूव करने को कुछ भी कर सकती हूं: पीवी सिंधु

नई दिल्लीपीवी सिंधु में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचने वाली देश की पहली खिलाड़ी बन गई हैं। साल 2017 में जिस जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा से वह हार गई थीं, इस साल उसी को सीधे सेटों में हराकर उन्होंने वर्ल्ड चैंपियन के ताज पर कब्जा किया है। यह सफलता किसी चमत्कार से कम नहीं है। पद्मश्री और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित इस महान खिलाड़ी से बात की संध्या रानी ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश... सबसे पहले आपको बधाई। दो बार विश्व चैंपियन के फाइनल में पहुंचकर चूक जाने के बाद इस बार नोजोमी ओकुहारा को हराकर स्वर्ण पदक प्राप्त करना... कैसा अनुभव रहा?धन्यवाद! मैं बहुत खुश हूं। मुझे इस जीत का लंबे अर्से से इंतजार था। हालांकि इससे पहले मैं दो ब्रॉन्ज और दो सिल्वर मेडल जीत चुकी हूं। लेकिन विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने के बाद मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है। इस बार आप पूरी तैयारी के साथ गई थीं। आपके खेल को देखकर ही लग रहा था कि आप फॉर्म में हैं। जरा अपनी तैयारी के बारे में बताएं। मैंने इस गेम को जीतने के लिए बहुत कड़ी मेहनत की थी। इसी पर फोकस बनाए रखने के लिए मैंने थाईलैंड के लिए नहीं खेला। सिर्फ इंडोनेशिया और जापान के लिए खेली मैं। मकसद यही था कि इस टूर्नामेंट की तैयारी अच्छे से कर सकूं। अब आगे की क्या योजना है? भविष्य की योजनाओं में मेरी यह जीत अहम भूमिका निभाएगी, क्योंकि जो आत्मविश्वास मैंने इस गेम से प्राप्त किया है उससे मैं और मेडल्स जीत सकती हूं। अब मेरा अगला लक्ष्य है 2020 का ओलिंपिक। परंतु उससे पहले ओलिंपिक क्वालिफिकेशन है और मैं पूरे विश्वास के साथ यह उम्मीद करती हूं कि मैं उसमें जरूर अच्छा करूंगी। इस जीत का श्रेय किसको देती हैं?मेरी यह जीत सिर्फ मेरी कड़ी मेहनत का ही फल नहीं है, बल्कि मेरे माता-पिता का भी इसमें काफी योगदान है। उनके निरंतर प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि मैंने अपने खेल में काफी इंप्रूव किया है। मेरे पर्सनल कोच श्रीकांत वर्मा हैं। पिछले दो वर्षों से मेरे खेल को बेहतर बनाने में उनका भी बहुत बड़ा योगदान है। क्या महिला कोच होने की वजह से आपके खेल पर असर पड़ा है?हां, यह सच है कि मिस किम ने मेरे खेल में कुछ बदलाव कए हैं। मैं कुछ महीनों से उनसे ट्रेनिंग ले रही थी। इसके अलावा मैंने गोपीचंद सर से भी हेल्प लिया है जिसका परिणाम आप सबके सामने है। ट्रेनिंग के दरम्यान आपकी दिनचर्या क्या थी?मैं सुबह सात से लेकर आठ बजे तक खेलती हूं और आठ से दस के बीच में कुछ खाती हूं। इसके बाद मैं ट्रेनिंग के लिए जाती हूं। फिर शाम में मैं चार से छह बजे तक खेलती हूं। एक दिन में छह से सात घंटे खेलने का मेरा रूटीन है। इस रूटीन को मैं बहुत ही अनुशासित होकर फॉलो करती हूं। आपकी नजर में सबसे अच्छा खिलाड़ी कौन है? आप किसे अपना रोल मॉडल मानती हैं?मैं यह नहीं कह सकती कि बेस्ट प्लेयर कौन है। हरेक प्लेयर में अपनी कोई न कोई विशेषता होती है। इसलिए किसी एक के बारे में कहना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। जहां तक रोल मॉडल का सवाल है तो मेरे लिए मेरे पिता ही रोल मॉडल हैं। वह स्वयं वॉलिबाल के एक अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। मैंने उनसे काफी प्रेरणा ली है। यदि मैं गलती करती हूं तो वह मुझे सुधारते हैं। उनके मार्गदर्शन से मेरे खेल पर हमेशा अच्छा प्रभाव पड़ा है। क्या आगे चलकर अपनी अकैडमी खोलना चाहेंगी?भविष्य में मैं अपनी अकैडमी खोलूंगी या नहीं अभी इसके बारे में कुछ निश्चित नहीं कह सकती हूं क्योंकि अभी मैं सिर्फ अपने खेल पर ध्यान केंद्रित रखना चाहती हूं। हम खिलाड़ियों की सफलता को देखकर खुश होते हैं, मगर उनकी सफलता के पीछे छुपी कठिन मेहनत से रूबरू नहीं होते हैं। प्लीज उस बारे में थोड़े विस्तार से बताएं।यह तो सच है कि खेल में जीतने के लिए मेहनत की बहुत आवश्यकता पड़ती है लेकिन यह मेहनत सिर्फ कुछ महीनों या सालों की नहीं होती। पूरे जीवन मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर कहीं सफलता मिलती है। इसमें उतार-चढ़ाव का भी सामना करना पड़ता है। इसलिए कठिन समय में आत्मविश्वास को बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है। खुद को फॉर्म में रखने के लिए बेहतर करके दिखाना होता है। मैं सिर्फ अपनी कड़ी मेहनत के बल पर ही नहीं जीती हूं। जैसा कि मैंने पहले बताया, मेरे माता-पिता के साथ मेरे कोचों का भी इसमें विशेष योगदान रहा है। आप खाने की बेहद शौकीन हैं पर सुना आपको सब कुछ छोड़ना पड़ा। कितना मुश्किल होता है खुद को रोके रखना?मैं जंक फूड बहुत पसंद करती हूं लेकिन मैंने जंक फूड खाने पर रोक लगा रखी है। सच कहूं तो इससे मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि जब मैं अपने लक्ष्य को पाने के लिए संयम रखती हूं तो मुझे उसमें कोई परेशानी नहीं होती है। मुझे खेलना बहुत पसंद है और मैं अपने को बेहतर बनाने के लिए कुछ भी कर सकती हूं।


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