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हौसले की मिसाल: गरीबी-दिव्यांगता को हराकर जीतीं लक्ष्मी

फरीदाबाद गरीबी और दिव्यांगता को हराकर आज धावक हर किसी के लिए प्रेरणा बन गई हैं। एक वक्त उनके परिवार में पैसे की तंगी थी, लेकिन आज लक्ष्मी की बारिश हो रही है। उन्होंने नैशनल और इंटरनैशनल लेवल की दौड़ में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। बल्लभगढ़ के आर्य नगर में रहने वाली लक्ष्मी के हौसले कभी उनकी दिव्यांगता के आड़े नहीं आई। उन्होंने अपने प्रदर्शन के दम पर हरियाणा के सर्वोच्च खेल सम्मान भीम अवॉर्ड को अपने नाम किया है। आर्थिक स्थिति रही कमजोर लक्ष्मी के पिता पन्नालाल शर्मा रेलवे पुलिस स्पेशल फोर्स से रिटायर्ड हैं और माता राजवती गृहिणी हैं। लक्ष्मी ने 2008 में अग्रवाल महाविद्यालय से स्नातक किया, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनकी पढ़ाई के साथ-साथ खेल पर भी असर पड़। सारी मुश्किलों से जूझते हुए उन्होंने अपने घर पर कुछ विद्यार्थियों को ट्यूशन देना शुरू किया। इससे कुछ पैसा इकट्ठा हुआ और उन्होंने वर्ष 2011 में बीएड पूरा किया। साथ ही खेल की दुनिया में भी पहचान बनानी शुरू की। पोलियो के सामने नहीं हारी लक्ष्मी जब 1 साल की थीं तो उनका दायां पैर पोलियोग्रस्त हो गया था। वह बताती हैं कि जब वह अपनी सहेलियों को खेलते हुए देखती थीं तो मन में खेलने की इच्छा होती थी, लेकिन पूर्ण रूप से सक्षम न होने के कारण अपने मन की बात को अपने मन में ही दबा लेती थीं। लक्ष्मी को शुरुआती दौर में परिवार के लोगों का साथ नहीं मिला, लेकिन उनका कहना है कि जब वह खेल के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने लगीं तो हर किसी से प्रोत्साहन मिलने लगा और नैशनल व इंटरनैशनल दौड़ में सफल रहीं। उपलब्धियां
  • 2008 जयपुर में नैशनल प्रतियोगिता में लंबी कूद स्वर्ण, 100 मीटर स्वर्ण और 200 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता
  • 2010 पंचकूला में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में लंबी कूद में स्वर्ण पदक व 100 मीटर दौड़ में कांस्य पदक पर कब्जा
  • 2012 कर्नाटक में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता के दौरान लंबी कूद में स्वर्ण पदक जीता
  • 2013 कर्नाटक में आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में 100 और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीते
  • 2014 उत्तरी अफ्रीका में विश्व पैरा ओलिंपिक चैंपियनशिप के दौरान लंबी कूद में रजत और 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता


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